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Showing posts from December, 2015

क्या ताजमहल का सोमनाथ से कोई संबन्ध है ?

ये लेख मेरी कल्पना नही वरन् कुछ प्रचलित कथाओं का सार है , महाभारत क् पश्चाताप जब श्री कृष्ण ने देहावसान करने का निर्णय लिया उस से पहले उन्होंने भगवान शिव के मंदिर का निर्माण किया , उसका मुख्य कारण था उनकी संवतका मणी जो कि रेडियम की बनी थी , यह एक विध्वंस कारी पदार्थ है , उन्होंने जब मंदिर निर्माण किया तो उसमें एक शिवलिंग स्थापित किया और शिव और शक्ति के बीच में वो मणी भी स्थापित कर दी , अब आप सोचोगे कि इसके लिये शिव मंदिर की क्या जरूरत थी तो मैं आपको समझता हूं , शिवलिंग में बेल पत्र , केला और दूध चढाया जाता है बेल पत्र रेडियम के प्रसार को सोक लेता है , आपने सुना होगा कि गजनवी ने १७ बार सोमनाथ पर हमला किया और लूटा ,लेकिन उसे दरवाजे, खिडकी उखाड़ कर ले जाने की क्या जरूरत पडी ? फिर क्यों उसने उन्हें रास्ते में फेंक दिया ? क्योंकी रेडियम की किरणों की वजह से उनमें चमक आ जाती थी लेकिन बाद में उसे पता चलता कि ये सिर्फ लोहा है तो वो फेंक देता था । इसी चमक ने उसे १७ बार आक्रमण करने को मजबूर किया , यही बात राजा जय सिंह को पता चली तो उन्होंने वो मणी वहां से निकालकर अपने राज्य मे बने तेजोमहल में स्

एक नजर चिपको आन्दोलन

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जब एक वृक्ष पर चलती कुल्हाड़ी के आगे आ खडी  हुई नारी शक्ति तो जन्म हुआ चिपको आन्दोलन का ....और उद्घोषणा हुई                                             क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।                                            मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जंगलो की अन्धाधुन कटाई के ठेके दिए जाने पहाड़ो के पहाड़ वृक्षों से खाली होते जा रहे थे l एक और थे गाव के नागरिक तो दूसरी और सरकार के संरक्षित वन ठेकेदार l यह विकास बनाम विनाश की लडाई थी जो चली आ रही है सदियों से l प्रक्रति के साथ रहने वाले इस विनाश कहते है जबकि आधुनिकता की जरूरत को पूरा करने के लिए इसे विकास के लिए किया गया कृत्य कहते है l पर्यावरण के लिए जंगल उपयोगी है तो इमारतों के लिए कोई मूल्य नही l विकास की आंधी में हमने कई बार बार विनाश को ही चुना है l लेकिन समय समय में प्रक्रति की अमूल्य धरोवर को बचने के लिए धरती पुत्र पुत्री भी आगे  आते रहें है l इसी कड़ी में चमोली गढ़वाल जिले में सन् 1973 को शुरू हुआ चिपको आन्दोलन । जिसकी प्रणेता बनी गौरा देवी नाम की

साल में एक बार आ जाओ

पहाड़ से पहाड़ के निवासी जा रहें है बस रहें है शुद्ध हवा पानी को छोड़ शहरों में पहाड़ वीरान सा खड़ा है देख रहा है कौन सुध ले अब उसकी कौन पुकार लगाए ना जवानी रुकी ना पानी रुका मेघ मल्हार गाए बहुत ना बदल रुका घर कुड़ी सब बांज बनी कौथिक में आये कौन घर के बच्चे सयाने हो गए बुड्ढे बाप को समझाए कौन छल कर ठगा पहाड़ को टूटते पहाड़ बचाये कौन अब कहाँ पैदा होती है टिचरी माई इस बेरी शराब को आग लगाये कौन फौजी बेटा भी बस गया भाबर में खेत में हल लगाये अब कौन प्रदेशीयो की तरह ही लोट आओ कुछ रौनक तो टिपरी डाँडो में लागो देवताओ की आस लगी है गांव को प्यास लगी है कुछ ज़िंदा है बड़े बुड्ढे एक बार देख जाओ ना लाना शहर से कुछ बाड़ी फाण खा जाओ कब बुझ जाये घर के बुड्ढे दीपक एक आस बन साल में एक बार आ जाओ

जल जंगल जमीन

जल जंगल जमीन बस यही तो सोच थी हमारी एक नए राज्य अपने राज्य के निर्माण के लिए । क्या आज हमें यह सब मिल पाया ? नही राज्य बनने के बाद यह सब हमसे छीन लिया गया । पहले की अपेक्षा अब ज्यादा लूटा गया हमको । जल आज कोन सी नदी है जिसमे सरकार ने बिजली परियोजना ना चला रखी हो । राष्ट्र की सम्रद्धि को सारा मूल्य हम दे रहें है । उसके बदले में हमें क्या मिल रहा कभी सोचा है ? आज भी पहाड़ के कई हिस्सों में पानी के लिए दो चार किलोमीटर चलना पड़ता है । देश के बड़े हिस्से की पानी की जरूरत को पूरा करने वाला राज्य प्यासा है । देश की उन्नति के लिए बिजली की मांग को पूरा करने वाला प्रदेश अँधेरे में है । क्या यह दुर्भाग्य नही ? जंगल जिस जंगल पे हमारे पूर्वजो ने अभिमान किया था आज वो सब सरकारी जंगल बन चुके है । हम रशोई के लिए लकड़ी भी नही ला सकते और सरकार वहां पेड़ के पेड़ काटने के लिए ठेके उठती है । हमारे पशु जंगल में नही जा सकते हम जंगल के रास्ते से नही निकल सकते । पहरे पर जंगलात के अधिकारी है । क्या यह अन्याय नही ? जमीन जब पानी बिजली नही तो भला जमीन किस काम की । आज तक सरकार ने कभी पहाड़ी क्षेत्र के हिसाब

पहाड़ आज भी लूट रहा है

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9 सितम्बर 2000 को जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया तो प्रदेशवासियो ने अपने एक लंबे शांतिपूर्वक आंदोलन और हजारो बलिदानियों को नमन करते हुए अपने क्षेत्र के विकास की नीव को पड़ते हुए देखना चाह लेकिन पहला ही कुठारधात दिल्ली में बेठे राजनीतिज्ञ ने किया । जब प्रदेश का नाम उत्तरांचल किया । इस छल के साथ ही उत्तरखंड की नीव डाली गयी और भविष्य के गर्भ में कई छल छीपे थे । सोचा था पहाड़ो में विकास होगा । पहाड़ की जवानी को पहाड़ में रोकने के लिए उपाय किये जायेंगे । जल जंगल जमीन पर अधिकार मिलेगा । लेकिन हुआ क्या ? यूकेडी के महारथी सत्ता के लालच में बीजेपी और कोंग्रेस में चले गए । जो बचे वो उत्तराखंड के पितामह बनने की जुगत में आपस में लड़ पड़े । पहली सरकार बीजेपी की और दूसरी करवट कोंग्रेस की आज भी पहाड़ पानी को तरस रहा है । सड़क जो कभी बनी बस वोही है जो टूट गयी उ हे देखने वाला कोई नही । विकास का पहिया मनो रुद्रपुर हरिद्वार कोटद्वार में ही रुक गया हो । पहाड़ में चढ़ने पर यह हाथी कभी कामयाब ना हो पाया । पहाड़ को पहले लखनऊ से लूटा जाता था अब देहरादून से लूटा जाने लगा । पहले तो दुःख था की बच्चे ही कमाई के

उत्तरखंड एक परिचय

                स्कन्द पुराण  में  हिमालय  को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-                      खण्डाः पञ्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।                      केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥ उत्तर भारत की सोम्य पहाड़ियों में बसा उत्तराखंड प्रदेश अपनी विशाल प्रकृति सुंदरता के कारण विश्वभर के पर्यटको का धयान अपनी और खिचता है । तो हिन्दू आस्था के रूप में यह प्रदेश देवभूमि कहा जाता है । जहाँ कई पौराणिक मंदिर है । पवित्र गंगा और यमुना का जन्मस्थान होने के कारण यह प्रदेश धार्मिक दृष्ठि से अति महत्वपूर्ण हो जाता है । सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड की सीमा तिब्बत (चीन ) और नेपाल से मिलती है । भारत सरकार के नवरत्न औद्योगिक इकाई में से ONGC और BHEL यह कार्यरत है ।                                                      उत्तराखंड = उत्तर + अखंड         उत्तर भारत को धर्मिक रूप से एक सूत्र में बंधने के कारण ही संभवत इसका नाम उत्तराखंड पडा होगा । हिन्दू वेद और पुराणों में भी उत्तराखंड नाम लिया गया है । इस स्थान को देव साधना व तपस्या बड़ा ही पवित्र