जल जंगल जमीन

जल जंगल जमीन बस यही तो सोच थी हमारी एक नए राज्य अपने राज्य के निर्माण के लिए ।

क्या आज हमें यह सब मिल पाया ?
नही राज्य बनने के बाद यह सब हमसे छीन लिया गया । पहले की अपेक्षा अब ज्यादा लूटा गया हमको ।

जल
आज कोन सी नदी है जिसमे सरकार ने बिजली परियोजना ना चला रखी हो । राष्ट्र की सम्रद्धि को सारा मूल्य हम दे रहें है । उसके बदले में हमें क्या मिल रहा कभी सोचा है ?

आज भी पहाड़ के कई हिस्सों में पानी के लिए दो चार किलोमीटर चलना पड़ता है । देश के बड़े हिस्से की पानी की जरूरत को पूरा करने वाला राज्य प्यासा है ।

देश की उन्नति के लिए बिजली की मांग को पूरा करने वाला प्रदेश अँधेरे में है । क्या यह दुर्भाग्य नही ?

जंगल
जिस जंगल पे हमारे पूर्वजो ने अभिमान किया था आज वो सब सरकारी जंगल बन चुके है । हम रशोई के लिए लकड़ी भी नही ला सकते और सरकार वहां पेड़ के पेड़ काटने के लिए ठेके उठती है ।

हमारे पशु जंगल में नही जा सकते हम जंगल के रास्ते से नही निकल सकते । पहरे पर जंगलात के अधिकारी है । क्या यह अन्याय नही ?

जमीन
जब पानी बिजली नही तो भला जमीन किस काम की ।

आज तक सरकार ने कभी पहाड़ी क्षेत्र के हिसाब से कोई खेती का कार्यक्रम नही बनाया । और बनाये भी तो कैसे जब सरकार का पहाड़ में दौरा आधिकारिक होता है । एक दिन में नेता जी कहाँ तक खबर ले सकेंगे ?

पौड़ी में कृषि मंत्रलाय को बैठाने वाले भूल गए की यहाँ कृषि विभाग की नही बागवानी विभाग बनाया जाना चाहिए था । कृषि तो मैदानी जिलो में होती है । पहाड़ में तो शारीर को गलाकर दो चार महीने का अन्न ही उगाया जा सकता सकता है ।

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