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Showing posts from April, 2017

जलते जंगल को देखकर प्रकृति पुत्र उदासीन क्यों ?

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                                                    जंगल आग और नागरिक उतरदायित्व जंगलो से मानव सभ्यता का सीधा संबंध रहा है। आज का विकसित, शिक्षित, आधुनिक, महानगरीय मानव स्वम् को कितना ही माना लें लेकिन यह सत्य है कि उसके पूर्वज कभी ना कभी वनों में ग्रामीण जीवन से निकलकर ही उन्हें आज की जीवन शैली तक पहुँचा सकें। गर्मियों के आरंभ में जंगलो में लगने वाली आग कोई नई घटना नही है यह घरती का प्राकृतिक नियम है। शरद, पतझड़, बसंत, ग्रीष्म, वर्षाकाल यह प्राकृतिक चक्र भी है नियम भी है। पुराने पते पेड़ो से झड़ चुके है और फैल गए है धरती में, ढेर के ढेर लगे है। नए पतो से वृक्ष जंगलो का श्रंगार कर रहें है। लेकिन सूखे पतो के नीचे छुपी धरती में समायी जड़ें इस श्रंगार का आनंद नही ले पा रही। जबकि प्रकृति मानव को अपने माध्यम से जन्म-मरण के इस खेल को समझा रही है।  जंगली जानवर मस्त है और वो प्रकृति के अद्धभुत दृश्य में अठखेली कर रहें। छाया में पड़े पत्थर शीतल है जबकि धूप में पड़े गर्म है ओर दोनों सूखे पतो की भीड़ के पास ही है। अठखेली करते, भागते हुए जानवर के पैर से अचानक एक गर्म पत्थर उछलता

बद्रीनाथ धाम के रक्षक क्षेत्रपाल श्री घंटाकर्ण की कथा

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श्री घंटाकर्ण की उत्त्पति के बारे में कई लोककथा, पोराणिक प्रमाण एवम् जनश्रुतियां है| श्री घंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार से एक माना जाता है| श्री घंटाकर्ण को हिंदुत्व के साथ-साथ जैन, बोद्ध मत में भी एक लोक हितकारी देवता माना जाता है| उत्तराखंड के गढ़वाल प्रभाग में टिहरी, पोड़ी, और बद्रीनाथ में श्री घंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना है| श्री घंटाकर्ण को कोणार्क के विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर के पत्थरों पर भी नाव में नृत्य करते हुए भैरवों की प्रतिमा उत्कीर्ण किया गया है| घंटाकर्ण की एक प्रतिमा शांत भाव में है और एक रौद्र रूप में है|                       श्री घंटाकर्ण मंदिर लोस्तु बडियार गढ़ आसाम की शक्तिपीठ माँ कामख्या मंदिर के निकट श्री घंटाकर्ण का मंदिर है| रविन्द्रनाथ टैगोर की एक कथा में श्री घंटाकर्ण का उल्लेख मिलाता है|   गढ़वाल में घंटाकर्ण को ऐश्वर्य और सुख सम्पत्ति को देने वाला महान शक्तिशाली और पर्चाधारी देवता माना जाता है| बदरीनाथ में घंटाकर्ण का मंदिर है तथा उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं| भगवान् बद्रीनाथ की पूजा से पहले श्री घंटाकर्ण कि पूजा क

जो माँ के गर्भ में थे वो भी बने उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी

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उत्तराखंड राज्य के लिए आन्दोलन करने वाले आज तक सरकार और छुटभैये नेताओं के कारण चिह्नित नही किये जा सके जबकि राज्य निर्माण के समय जिनका जन्म भी ना हुआ था उनको राज्य आन्दोलनकारी का प्रमाणपत्र दिया गया है|   हरिद्वार निवासी पत्रकार ठाकुर मनोज ने इस बड़े षड्यंत्र को हरिद्वार जिलाधिकारी के समक्ष उठाया दो कई नकली आन्दोलनकारियों ने अपने प्रमाणपत्र निरस्त करने के लिए प्रशासन को जमा करावा दिए|   उत्तराखंड के भाग्य में यह नकली असली का खेल मात्र राज्य आन्दोलनकारी तक ही सिमित नही है| हिन्दु धर्म के कि चार शंकराचार्य पीठों में सर्वोक्ष ज्योतिष पीठ, जोशीमठ नकली शंकारचार्य के विवाद में काफी समय तक रही जिसको न्यायालय ने वर्तमान में स्वामी स्वरूपानंद को वास्तविक शंकराचार्य माना|   यह विवाद समाप्त हुआ तो हरिद्वार के भूमा निकेतन के महंत स्वामी अच्युतानंद ने स्वम् को शारदा-द्वारका पीठ का शंकारचार्य घोषित कर दिया जिसपर अखाडा परिषद् सहित तीनो शंकराचार्य ने अपनी अप्पति दर्ज करवाईं तथा शारदा-द्वारका पीठ पर स्वामी अच्युतानंद के प्रवेश पर प्रतिबंध लगया|   अब उत्तराखंड राज्य आन्दोल