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Showing posts from March, 2018

सिद्धपीठ माँ चन्द्रबदनी

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धार्मिकता, अध्यातम, एवं सांस्कृतिक विरासत के कारण विश्व में भारत का जो स्थान है वोही स्थान भरत के भीतर उत्तराखंड का है| पवित्र हिमालय के शिखर, देवभूमि, देवताओं-ऋषियों की भूमि, हर-हरी का निवास, माँ शक्ति का पैतृक निवास, परम-पवित्र गंगा-यमुना का जन्मस्थान यक्ष, किन्नर, अप्सरों के आवास, तपोभूमि, जैसे कई नामो से शुशोभित उत्तराखंड सृष्टि के आरंभ से ही सनातन हिन्दू धर्म, जैन, बौद्ध, सिख मत के लिए एक महत्वपूर्ण व धार्मिक स्थान है| संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म को समेटे उत्तराखंड अपनी एक बड़ी विरासत लिए विश्वभर के नागरिको के मध्य सदैव एक रहस्यमय, रोमाचक, उत्साहवर्धन की उर्जा को प्रसारित करता रहा है| यहाँ के मंदिरों, मठो, आश्रमों में सदैव भक्ति की जो धारा प्रभावित होती उसे देखकर नास्तिको के भीतर भी श्रद्दा स्वम् अंकुरित होती है| चन्द्रकुट पर्वत टिहरी गढ़वाल में स्थित माँ चन्द्रबदनी का मंदिर दैवीय त्रिकोणीय मंदिर समहू (माँ कुंजापुरी, माँ सुरकंडा) की ऊर्जा को समाहित करते हुए पवित्र 52 शक्तिपीठों (सिद्धपीठ) में से एक है| पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ समार

कुंजापुरी मंदिर

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देवभूमि उत्तराखंड में 52 सिद्धपीठों में से एक माँ कुंजापुरी का मंदिर ऋषिकेश से मात्र 28 किमी कि दुरी पर समुद्रतल से 1,665 मीटर कि उचाई पर स्थित है| यह दैवीय त्रिकोण मंदिर समहू माँ चन्द्रबदनी, माँ सुरकंडा माँ कुंजापुरी में व्यवस्थित है यह दैवीय त्रिकोण बड़ा पवित्र माना जाता है| प्रजापति दक्ष द्धारा महादेव शिव को यज्ञ में निमंत्रण ना देने तथा माँ सती के समुख ही उनके लिए असामानीय शब्द कहने पर माँ सती द्धारा यज्ञाग्नि में प्रवेश करने के उपरांत शिवगणों द्धारा यज्ञ को खंडित तथा प्रजापति दक्ष का शीश काटने के बाद शोकाकुल महादेव द्धारा माँ सती की पार्थिव देह को वर्षो रुन्दन करते देख भगवान विष्णु द्धारा माँ सती कि पार्थिव देह को सुरदर्शन चक्र द्धारा खंड-खंड करने के कारण माँ के 52 दिव्य अंग जो धरती पर गिरे और एक शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित हुए| कहा जाता है कि, कुंजापुरी में माँ के दिव्य शारीर का उपरी हिस्सा गिरा था जिसे संस्कृत में कुंजा कहते है इसी कारण माँ के इस धाम का नाम कुंजापुरी हुआ| मंदिर के मुख्यकक्ष जिसे गर्भगृह कहा जाता है वहाँ एक गड्डा है कहते है यही वो स्थान है जहाँ माँ का कु

अलोकिक, सुरम्य माँ सुरकंडा धाम

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पवित्र शक्तिपीठ माँ सुरकंडा धाम 52 सिद्धपीठो में से एक है जहाँ माँ सती के अंग शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित है| यहाँ मानवों पर देवताओं ने तप कर अपने-अपने मनोरथ को माँ कि कृपा से प्राप्त किया| पवित्र पौराणिक ग्रंथो के अनुसार जब प्रजापति दक्ष ने कनखल में यज्ञ कर सभी देवताओ को निमंत्रित किया लेकिन महादेव शिव को निमंत्रण नही दिया तो अपने पति के अपमान को व्याकुल होकर माँ सती ने यज्ञाग्नि में कूद कर अपने प्राणों का त्याग कर दिया| इससे आवेशित शिवगणों ने दक्ष यज्ञ को भंग कर दिया और महादेव शिव माँ सती कि पार्थिव देह को लेकर आकाशमार्ग में बेसुध होकर विचरण करने लगे जिससे सम्पूर्ण सृष्टि के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया तब भगवान विष्णु ने सुरदर्शन से माँ कि पवित्र देह को खंड-खंड में बाँट दिया जो अंग जहाँ गिरा वहाँ एक शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित होकर वो एक सिद्धपीठ बना| माना जाता है कि यहाँ माँ सती की गर्दन गिरी थी | स्कन्द पुराण व केदारखंड में भी माँ सुरकंडा धाम का महात्म्य मिलाता है कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि, देवराज इंद्र ने यहाँ माँ जगदम्बा स्वरुप माँ सुरकंडा की तपस्या कर