एक नजर चिपको आन्दोलन

जब एक वृक्ष पर चलती कुल्हाड़ी के आगे आ खडी  हुई नारी शक्ति तो जन्म हुआ चिपको आन्दोलन का ....और उद्घोषणा हुई

                                            क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
                                           मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।।



तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जंगलो की अन्धाधुन कटाई के ठेके दिए जाने पहाड़ो के पहाड़ वृक्षों से खाली होते जा रहे थे l एक और थे गाव के नागरिक तो दूसरी और सरकार के संरक्षित वन ठेकेदार l

यह विकास बनाम विनाश की लडाई थी जो चली आ रही है सदियों से l प्रक्रति के साथ रहने वाले इस विनाश कहते है जबकि आधुनिकता की जरूरत को पूरा करने के लिए इसे विकास के लिए किया गया कृत्य कहते है l


पर्यावरण के लिए जंगल उपयोगी है तो इमारतों के लिए कोई मूल्य नही l विकास की आंधी में हमने कई बार बार विनाश को ही चुना है l लेकिन समय समय में प्रक्रति की अमूल्य धरोवर को बचने के लिए धरती पुत्र पुत्री भी आगे  आते रहें है l

इसी कड़ी में चमोली गढ़वाल जिले में सन् 1973 को शुरू हुआ चिपको आन्दोलन । जिसकी प्रणेता बनी गौरा देवी नाम की एक साधारण लेकिन उच्च उर्जा से युक्त आम घरेलू महिला l गौरा नाम है माँ आद्या शक्ति का भी तो लोगो को लगा जेसे माँ स्वम् ही प्रक्रति के रक्षण के लिए उतर आई है l  इस अनोदोलन ने पुरे विश्व का ध्यान उस समय के खीचा जब जब पहाड़ की कोई भी खबर बाहरी दुनिया को नही मिलती थी l इसलिय भी यह आन्दोलन अपनी तरह का एक अद्भुत आन्दोलन बना जिसने पुरे विश्व का ध्यान अपनी और खीचा l




सन् 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध ने इस पहाड़ी क्षेत्र पर भारत सरकार की नजर पड़ी l सामरिक सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र की अनदेखी नही की जा सकती थी l चीन जेसे बड़े और शत्रुभाव वाले राष्ट्र से अपनी सीमाओ की रक्षा करने के लिए भारतीय सेना को यहाँ व्यवस्थित किया गया l सड़क मार्गो का निर्माण हुआ l नदियों के ऊपर पुल बंधे जाने लगे l

यह विकास पहाड़ देख रहा था उसके ख़ुशी थी क्यंकि अब उसको भी यातायात के साधन शुलभ हो रहें थे l सुविधाए उसके पास आ रही थी l लेकिन जल्द ही पहाड़ को इस विकास की कीमत देनी पड़ी अपने बहुमूल्य वृक्षों की कटाई से l यह कटाई अब पहाड़ के हर गाव में हो रही थी l सुबह से देर रात तक वृक्षों पर हो रहें कुल्हाडियो आरियो के प्रहार से पूरा पहाड़ कांप रहा था lवृक्षों की चीत्कार चाहू और थी l

फिर चमोली गढ़वाल में सन् 1974 की एक सुबह एक अनोखी घटना घटित हुई l जब अपनी कुल्हाडियो पर धार लगा कर जब वन ठेकेदार के लोग चमोली के  रैणी नामक के गाव में वृक्षों को कटाने पहुचे तो उन्होंने जो देखा शायद ही इसकी कल्पना किसी ने स्वप्न में की होगी l गौरा देवी और उनकी 21 सहयोगी महिलाए वृक्षों से लिपट रखी थी और कह रही थी - पहले हमको काटो फिर हमारे पेड़ो को कटना l

गौरा देवी की वो ललकार आज भी कई लोगो को याद जब उन्होंने कहा जंगल हमारा देवता है अगर किसी ने हमरे देवता पर हथियार उठाया तो उसकी खेर नही l

आज कोई वृक्ष नही कटा..................लेकिन कल की कोई सम्भावना नही थी
यह पहला दिन था जो शायद आशाओ के विपरीत इन महिलाओ के लिए सकरात्मक रहा

यही से नीव पढ़ी चिपको आन्दोलन की
अब विरोध का एक नया तरीका पुरे प्रवर्तिये आंचल में अपनाया जा रहा था

अब हर तरफ आन्दोलन हो रहा था पहाड़ को बचने के लिए नारी शक्ति के नारों से पूरा पहाड़ गूंज उठा

                                          पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ मरेंगे l 
                                                       लाठी-गोली खाएंगे, अपने पेड़ बचाएंगे ll 



शांतिपूर्ण चल रहें आन्दोलन पर पर सरकार की कोई सकतात्मक प्रतिक्रिया ना हुई l बल्कि अनोलन को कुचलने लिए आंदोलनकारियो को जेल में डाल दिया गया l सरकार ने जब तानाशाही दिखाई तो पहड़ो के वीरो का लहू भी खोल उठा और 1977 में जनाक्रोश ने नैनीताल क्लब आग के हवाले कर कर अपने इरादे बता दिए l

इसके बाद  सरकार का दमनचक्र और तेज हुआ सैकड़ों गिरफ्तारियां हुई लेकिन आंदोलन अब जनादोलन बन चूका था l अब हर नारी गौर देवी बन चुकी थी हर बालक गणपति कर्तिकीय बन चूका l यह आन्दोलन व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नही अपितु विश्व कल्याण के लिए एक प्रतिक बन चूका था l

आखिरकार सरकार को झुकाना पड़ा और 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना दिया गया और केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन किया गया l

गौरा देवी को सन् 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया । 
हलाकि गौर देवी के इस महानतम आन्दोलन को कई बुद्दिजीवियो द्वारा अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रयोग किया गया l गौर देवी ने कभी इसका विरोध ही किया और ना ही वो जानती थी कि उनके आन्दोलन का लाभ कई प्रमुख व्यक्ति द्वारा अपने नाम को चमकाने के लिए किया जा रहा है l 

 चिपको आन्दोलन की जननी गौरा देवी ने 4 जुलाई, 1991 को अपना शारीर छोड़ दिया l लेकिन वो आज भी जीवित है और चिरकाल तक जीवित ही रहेंगी एक प्रेरणा सोत्र बन कर हमारे ह्रदय में l 

कोटो कोटि नमन 

Comments

Surjeet said…
ब्लॉग पढ़ने के बाद मुझे खुशी हुई। आपका अद्भुत लेख पढ़कर मैं प्रभावित हो गया हूँ। आपने विषय को एक नए दृष्टिकोण से दिखाया है और यह वाकई महत्वपूर्ण है। चिपको आंदोलन उत्तराखंड

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