साल में एक बार आ जाओ
पहाड़ से पहाड़ के निवासी जा रहें है
बस रहें है शुद्ध हवा पानी को छोड़ शहरों में
पहाड़ वीरान सा खड़ा है देख रहा है
कौन सुध ले अब उसकी कौन पुकार लगाए
ना जवानी रुकी ना पानी रुका
मेघ मल्हार गाए बहुत ना बदल रुका
घर कुड़ी सब बांज बनी
कौथिक में आये कौन
घर के बच्चे सयाने हो गए
बुड्ढे बाप को समझाए कौन
छल कर ठगा पहाड़ को
टूटते पहाड़ बचाये कौन
अब कहाँ पैदा होती है टिचरी माई
इस बेरी शराब को आग लगाये कौन
फौजी बेटा भी बस गया भाबर में
खेत में हल लगाये अब कौन
प्रदेशीयो की तरह ही लोट आओ
कुछ रौनक तो टिपरी डाँडो में लागो
देवताओ की आस लगी है
गांव को प्यास लगी है
कुछ ज़िंदा है बड़े बुड्ढे
एक बार देख जाओ
ना लाना शहर से कुछ
बाड़ी फाण खा जाओ
कब बुझ जाये घर के बुड्ढे दीपक
एक आस बन साल में एक बार आ जाओ
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