पहाड़ आज भी लूट रहा है

9 सितम्बर 2000 को जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया तो प्रदेशवासियो ने अपने एक लंबे शांतिपूर्वक आंदोलन और हजारो बलिदानियों को नमन करते हुए अपने क्षेत्र के विकास की नीव को पड़ते हुए देखना चाह

लेकिन पहला ही कुठारधात दिल्ली में बेठे राजनीतिज्ञ ने किया । जब प्रदेश का नाम उत्तरांचल किया । इस छल के साथ ही उत्तरखंड की नीव डाली गयी और भविष्य के गर्भ में कई छल छीपे थे ।

सोचा था पहाड़ो में विकास होगा ।
पहाड़ की जवानी को पहाड़ में रोकने के लिए उपाय किये जायेंगे ।
जल जंगल जमीन पर अधिकार मिलेगा ।

लेकिन हुआ क्या ?

यूकेडी के महारथी सत्ता के लालच में बीजेपी और कोंग्रेस में चले गए ।

जो बचे वो उत्तराखंड के पितामह बनने की जुगत में आपस में लड़ पड़े ।

पहली सरकार बीजेपी की और दूसरी करवट कोंग्रेस की

आज भी पहाड़ पानी को तरस रहा है ।
सड़क जो कभी बनी बस वोही है जो टूट गयी उ हे देखने वाला कोई नही ।

विकास का पहिया मनो रुद्रपुर हरिद्वार कोटद्वार में ही रुक गया हो । पहाड़ में चढ़ने पर यह हाथी कभी कामयाब ना हो पाया ।

पहाड़ को पहले लखनऊ से लूटा जाता था अब देहरादून से लूटा जाने लगा ।

पहले तो दुःख था की बच्चे ही कमाई के लिए बाहर जाते थे । अब तो नेता भी देहरादून ही बस गए । आ जाते है चुनाव के समय । तब खूब बाते होती है पहाड़ के विकास की । खूब नारे लगते है । लेकिन जो जीत जाता है वो देहरादून हल्द्वानी बस जाता है ।

भला कौन नेता अपनी जान हथेली पे रखकर पहाड़ के खतरनाक रास्तो में अपनी गाड़ी दौड़ाये । अभी विधायक है कल सांसद भी बनाना है । देहरादून के बाद दिल्ली की बड़ी संसद में जाना है ।

लेकिन पहाड़ की जनता का क्या ?
आज तक कोई योजना नही कोई विकल्प नही

सुने भी तो कोई कैसें ?
पत्रकार भी राजकीय यात्रा में आते है वो भला सरकार को क्यों बताये उनके अन्याय को ?

पहाड़ तब भी लूट रहा था
पहाड़ आज भी लूट रहा है

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