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Showing posts from January, 2017

देवभूमि उत्तराखंड के इस मंदिर में होती है दानव की पूजा

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देवभूमि उत्तराखण्ड सनातन काल से देवताओं, ऋषि, मुनियों के लिए रक्षित क्षेत्र रहा है। अपने अद्धभुत और प्राचीन मंदिरों के इतिहास से विश्व विख्यात उत्तराखंड में देवताओ के मंदिर है तो दानवों के मंदिर भी है। उत्तराखंड के गढ़वाल में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ दानव की पूजा की जाती है। ये राहू मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित थलीसैण ब्लॉक के गांव पैठाणी में स्थित है। मंदिर की मान्यता अनुसार पैठाणी के राहू मंदिर में सदियों से दानव की पूजा होती आ रही है। कहा जाता है कि पूरे भारत वर्ष में यहां राहू का एकमात्र प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों के संगम पर स्थापित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। माना जाता गई कि राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था। कहा जाता है कि जहां पर राहू का कटा हुआ सिर गिरा था वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान शिव के साथ राहू की प्रतिमा की स्थापना की

गढ़पति गंगू रमोला और सैम मुखेम नागराजा पर आधारित नाटिका

संवेदना समूह की प्रस्तुति यह अद्धभुत प्रस्तुति गढ़वाली लोकगीतों और पवाडो में 12 सदी के गंगू रमोला और द्वापर में जन्मे भगवान् श्री कृष्ण की कथा पर आधारित है। संवेदना समहू की जीतू बग्ड्वाल के बाद, बीर भड़ गढ़पति गंगू रमोला पर आधारित नाटिका दर्शको ने खूब सराही। उत्तरखंड के गढ़वाल क्षेत्र में नागराजा की पूजा श्री कृष्ण  के रूप में की जाती है । यहाँ मिलने वाले दर्जनो नागदेवता मंदिर इसके गवाह है । वृन्दावन में यमुना जल में निवास करने वाले कालिया नाग उत्तरखंड में कैसे पहुंचे इसका लोकगीतों में जिक्र आता है। मान्यता है कि कृष्ण के आदेश पर यमुना छोड़ कर कालिया नाग उत्तराखंड के सेम मुखेम आ गए थे। इस इलाके के गढ़पति गंगू रमोला को नागराजा की पूजा स्वीकार नहीं थी।   ब्रह्मण को ढाई हाथ जमीन दान नहीं देने के श्राप के चलते सम्पन्नता से दरिद्र हुए गंगू को नागराज श्रीकृष्ण की कृपा से ही से ही राजपाट वापस मिला । उत्तरकाशी - टिहरी जनपद के बॉर्डर पर सेम मुखेम में नागराजा मंदिर में नागराजा के साथ गंगू रमोला की भी पूजा की जाती है और आज भी हर तीसरे वर्ष यहाँ नागराजा की जात्रा होती है जिसमे हजारो लोग रात्रि जागर

इतिहास के पन्नों में गुमनाम एक महान नारी टिंचरी माई

जब भी बेटा ग़लत रास्ते पर चलता है तो उसे वहाँ से बाहर मां ही ला सकती है, ज़्यादातर माँ सिर्फ़ अपने बच्चे को बचाती हैं पर एक ऐसी भी माँ थी जिसकी संतान कभी बुरे रास्ते पर नही गयी पर उसने उस बुराई का अंत किया जिसमें समाज के सैकड़ों बच्चे धँसे जा रहे थे ,#शराब जी हाँ शराब वो भी देशी शराब कई मिलावटों के साथ । बात तब की है जब भारत को नयी नयी आजादी मिली थी और उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा #टिंचरी यानी देशी शराब की गर्त में धँसा जा रहा था , तब एक साध्वी बनी टिंचरी मांई, आज वो टिंचरी मांई इतिहास के पन्नों में गुमनाम है, चलिये जानते हैं टिंचरी माई के बारे में । 1817 में थलीसैण गढवाल में जन्मी टिंचरी माई का वास्तविक नान दीपा देवी था, बाल्यकाल में 2 वर्ष की उम्र में उनकी माता का देहांत हो गया और 7 वर्ष की उम्र में एक सेना के जवान के साथ विवाह हो गया उनका नाम था गणेश राम नवानी। विवाह के कुछ समय बाद ही मांई अपने पति के साथ रावलपिंडी चली गयीं , काफ़ी समय तक वहाँ रही लेकिन युद्ध में उनके पति शहीद हो गये । पति का दाह संस्कार करके मांई एक सेना के कंपनी कमांडर की देखरेख में रहीं और एक सप्ताह बाद उन्हे उन

उत्तराखंड के इस देवीमंदिर की शक्ति ने किया वैज्ञानिकों को आश्चयचकित

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देवभूमि उत्तराखंड में हिन्दू धर्म के कई प्राचीन मंदिर विध्यमान है जिनका अपना पौराणिक इतिहास है। कई मंदिरो की अपनी ही विशेषता है तो कई के चमत्कार आज भी यदाकदा देखने सुनने को मिल जाते है। हिमालय की तलहटी से हिमालय के शिखर तक बसा उत्तराखंड अपने अद्धभुत और प्रचीन मंदिरो के नाम से जग विख्यात है। उत्तराखंड के कुमायूं मंड़ल के एक मंदिर ने अपनी अद्धभुत शक्ति के कारण और रहस्य के विश्वभर के वैज्ञानिकों की नींद उड़ा रखी है। कुमायूं मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित माँ कसारदेवी मंदिर की असीम शक्ति से NASA के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं। NASA के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस स्थान के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। वहीँ पर्यावरणविद डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। अजय रावत के अनुसार, कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू- चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। गत दो वर्षो से NASA के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने