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Showing posts from July, 2017

पंच केदार - एक पवित्र और साहसिक यात्रा

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देव आदि देव महादेव के भक्त उनके हर धाम में पहुचने को लालायित रहते है फिर वो धाम चीन शासित तिब्बत में कैलाश मानसरोवर जैसी दुर्गम यात्रा हो या फिर इस्लामिक आतंकियों के गढ़ में स्थित पवित्र अमरनाथ यात्रा...... देवभूमि उत्तराखण्ड में महादेव के 12 ज्योतिलिंलम में से एक केदारनाथ जी के महातम का सभी धर्म परायण श्रधालुओं को भली भांति पता है| लेकिन बहुत से व्यक्ति केदारनाथ जी के पूर्ण स्वरुप में विखंडित केदारनाथ को नही जानते, केदारनाथ जी के इस पूर्ण स्वरूप की यात्रा को ही उत्तराखंड में पंच केदार यात्रा कहते है|  चित्र सम्भार http://www.uttarakhandadventure.in कहते है कि, पञ्च केदार सहित काठमांडू नेपाल में स्थित श्री पशुपतिनाथ जी के दर्शन उपरांत ही केदारनाथ जी के दर्शन को पूर्ण माना जाता है| केदारनाथ सहित अन्य चार केदार कि यात्रा भी सडक तथा दुर्गम पैदल मार्ग द्वारा कि जाती है, श्रधा, विश्वास और साहस का यह अद्भुत संगम महादेव के भक्तो में सरलता से पाया जाता है| यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करन

उत्तराखण्ड के संगीत ने स्टीफन को बनाया फ्योंलीदास

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कहते है संगीत का रिश्ता अनुभूति और ह्रदय से होता है सुख-दुःख में संगीत का कोई ना कोई राग अवश्य होता है| कई राष्ट्रीयता में बंट चुकी धरती पर संगीत ने आज भी वैश्विक एकता का परिचय दिया है वरना सात समुद्र पार का एक नागरिक भारत में देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड में पर्यटन कर लौट जाता यदि वो गढ़वाल का संगीत ना सुनाता| अमेरिका के प्रसिद्ध विश्वविधालयों में से एक सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के प्रो स्टीफन सियोल को उत्तराखण्ड के संगीत ने गढ़वाल कि भूमि पर रुकने तथा उसे सिखने को उत्साहित कर दिया| और यहीं से प्रो. स्टीफन की फ्योलीदास के रूप में यात्रा आरंभ हुई| उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध वाद्य यंत्रो में प्रमुख ढोल-दमाऊ को सीखकर उसमे महारत हासिल कर चुके स्टीफन कई गढ़वाली कार्यक्रमो में दर्शको को अनादित कर चुके है, अभी हाल में ही चमोली जिले की भिलंगना घाटी में आयोजित पांडव नृत्य में उनक ढोल की गूंज सुनाई दी| स्टीफन के भागीरथी प्रयासों से उत्तराखण्ड के वाद्य यंत्र ढोल की गूंज ने अमेरिका में भी दर्शको को अभिभूत किया| उत्तराखण्ड कि संस्कृति का अभिन्न अंग ढोल-दुमाऊ आज उत्तराखण्ड ही नही अमे