अलोकिक, सुरम्य माँ सुरकंडा धाम
पवित्र शक्तिपीठ माँ सुरकंडा धाम
52 सिद्धपीठो में से एक है जहाँ माँ सती के अंग शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित
है| यहाँ मानवों पर देवताओं ने तप कर अपने-अपने मनोरथ को माँ कि कृपा से प्राप्त
किया|
पवित्र पौराणिक ग्रंथो के अनुसार
जब प्रजापति दक्ष ने कनखल में यज्ञ कर सभी देवताओ को निमंत्रित किया लेकिन महादेव
शिव को निमंत्रण नही दिया तो अपने पति के अपमान को व्याकुल होकर माँ सती ने
यज्ञाग्नि में कूद कर अपने प्राणों का त्याग कर दिया| इससे आवेशित शिवगणों ने दक्ष
यज्ञ को भंग कर दिया और महादेव शिव माँ सती कि पार्थिव देह को लेकर आकाशमार्ग में
बेसुध होकर विचरण करने लगे जिससे सम्पूर्ण सृष्टि के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया
तब भगवान विष्णु ने सुरदर्शन से माँ कि पवित्र देह को खंड-खंड में बाँट दिया जो
अंग जहाँ गिरा वहाँ एक शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित होकर वो एक सिद्धपीठ बना| माना
जाता है कि यहाँ माँ सती की गर्दन गिरी थी|
स्कन्द पुराण व केदारखंड में भी
माँ सुरकंडा धाम का महात्म्य मिलाता है कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि, देवराज
इंद्र ने यहाँ माँ जगदम्बा स्वरुप माँ सुरकंडा की तपस्या कर दत्यों से अपने राज्य
को पुनः पाया था| गंगा दशहरा तथा नवरात्री के पवित्र दिन माँ के दरबार में
श्रद्धालुओं का भारी जनसैलाब उमड़ आता है| इन विशेष दिनों में जो श्रद्धालु भक्त
माता के दरबार में आते है उनकी सभी मनोकामना माँ पूरी करती है ऐसा भक्तो का
विश्वास है|
सुरकंडा माँ का यह मंदिर समुन्द्र
ताल से लगभग 3,000 मीटर कि उचाई पर स्थित है यहाँ से हिमालय के
विशाल पर्वत शिखरों के दर्शन होते है जिनमें बद्रीनाथ शिखर (नीलकंठ शिखर) केदारनाथ
(मेरु-सुमेरु पर्वत), चौखम्बा, गौरीशंकर, तुंगनाथ आदि प्रमुख है|
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