बद्रीनाथ धाम के रक्षक क्षेत्रपाल श्री घंटाकर्ण की कथा


श्री घंटाकर्ण की उत्त्पति के बारे में कई लोककथा, पोराणिक प्रमाण एवम् जनश्रुतियां है| श्री घंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार से एक माना जाता है| श्री घंटाकर्ण को हिंदुत्व के साथ-साथ जैन, बोद्ध मत में भी एक लोक हितकारी देवता माना जाता है| उत्तराखंड के गढ़वाल प्रभाग में टिहरी, पोड़ी, और बद्रीनाथ में श्री घंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना है|
श्री घंटाकर्ण को कोणार्क के विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर के पत्थरों पर भी नाव में नृत्य करते हुए भैरवों की प्रतिमा उत्कीर्ण किया गया है| घंटाकर्ण की एक प्रतिमा शांत भाव में है और एक रौद्र रूप में है|


                      श्री घंटाकर्ण मंदिर लोस्तु बडियार गढ़



आसाम की शक्तिपीठ माँ कामख्या मंदिर के निकट श्री घंटाकर्ण का मंदिर है| रविन्द्रनाथ टैगोर की एक कथा में श्री घंटाकर्ण का उल्लेख मिलाता है| 

गढ़वाल में घंटाकर्ण को ऐश्वर्य और सुख सम्पत्ति को देने वाला महान शक्तिशाली और पर्चाधारी देवता माना जाता है| बदरीनाथ में घंटाकर्ण का मंदिर है तथा उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं| भगवान् बद्रीनाथ की पूजा से पहले श्री घंटाकर्ण कि पूजा का विधान है| घंटाकर्ण को बद्रीनाथ धाम का क्षेत्रपाल (रक्षक) माना जाता है, इसलिए बद्रीनाथ के कपट से पहले घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलते है है जो बद्रीनाथ के कपट बंद होने के बाद ही बंद किए जाते है|

हिमालय के अंग अंग में घंटाकर्ण प्रतिष्टित और पूजित हैं| टिहरी गढ़वाल में क्वीलीलोस्तु पौड़ी गढ़वाल में खिरशुचीनी बाली कंडरस्यूं चोपड़ा कोट व दूधातोली सभी जगह घंटाकर्ण पूजे जाते हैं| लोस्तु में श्री घंटाकर्ण की जात्रा हर 12 वर्ष में महाकुम्भ की तरह आयोजित कि जाती है|

ऋषिकेश में वीरभद्रघनडयाल में महाबल और बद्रीनाथ में मणिभद्र की उपस्थिति भी इस पुरे क्षेत्र पर शिव और उनके गणों के अधिपत्य को प्रमाणित करती है|

लेकिन कुछ लोकचार में घंटाकर्ण के बारे में कुछ भिन्न गाथा चलती है| जागरों में उन्हें पांडवो यानी अर्जुन (खाती) और सुबोध (सुभद्रा) का बेटा और नारायण (कृष्ण ) का भांजा कहा गया है| उन्हें अभिमन्यु माना जाता है| जबकि चीनी पौड़ी में भीम और हिडिम्बा के पुत्र (घटोत्कच) बर्बरीक माना जाता है| स्मरण रहे कि बर्बरीक राजस्थान में श्यामखाटू के नाम से विख्यात हैं|

दक्षिण भारत और गुजरात मे भी घंटाकर्ण की पूजा होती हैकेरल मे भगवान् कृष्ण लीलाओं मे उनकी कृष्ण से भेंट का नृत्य नाटक मे वर्णन होता है| श्री घंटाकर्ण को यक्ष राज कुबेर का सेनापति भी माना जाता है| दक्ष प्रजापति के यज्ञ को जिन शिव गणों ने भंग किया था श्री घंटाकर्ण भी उनमे से एक थे| 

पुराणो के अनुसार श्री घंटाकर्ण की उत्पति कहा गया है कि देवासुर संग्राम में जब शिव पुत्र स्कंध यानि कार्तिकेय को तारक असुर का वध करने के लिए जब देव सेना का सेनापति बनाया तो ब्रह्मा ने उनकी रक्षा के लिए चार महाशक्तिशाली वीरों की उत्पति की जिनकी गति वायु की तरह थी और वो अपनी शक्ति को अपनी इच्छा से बढ़ा घटा सकते थे| इनमे से घंटाकर्ण एक थे| अन्य वीरो के नाम  नान्दिसेनलोहिताक्ष और कुमुदमलिन है|

शैव मत के अनुसार, घंटाकर्ण पराशिव के पांच लौकिक अवतारों में से एक हैं जो हर युग में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और जो शैव परम्परा और ज्ञान को अक्षुण रखते हैं और इसका प्रसार करते हैं| इनके नाम रेणुकादारुकघंटाकर्णधेनुकर्ण और विस्वकर्ण हैं|

ये परमशिव के पांच भावो सद्योजातवामदेवअघोरतत्पुरुष और ईशान के प्रतिक हैं| सतयुग में ये एकाक्षर शिवाचार्य द्वीक्षर शिवाचार्यत्रि क्षर शिवाचार्यचतुसक्षर शिवाचार्य और पञ्चक्षर शिवाचार्य के नाम से जाने गए|

कलियुग में ये रेवानासिद्धा, मरुलासिद्धा, एकोरमापंडितअराध्य और विस्वराध्य के नाम से अवतरित हुए और इन्होने लिंगायत संप्रदाय का प्रतिपादन किया| इस प्रकार श्री घंटाकर्ण कलियुग में एकोरम आचार्य के रूप में भीमशंकर लिंग से उत्पन्न हुए और उन्होंने केदार पीठ के स्थापना की| तथा इसी प्रकार अन्य आचार्य भी भिभिन्न लिंगो से प्रकट हुए 
श्री घंटाकर्ण को महाबल नाम से भी जाना जाता है| लिंगपुराण के अनुसार 17वे द्वापर युग में जब भगवान शिव ने गुहावासी के रूप में अवतार लिया तो उनके उत्तथ्यवामदेवमहायोग और महाबल नामक पुत्र हुए|

जैन ग्रंथों में श्री घंटाकर्ण का नाम महाबल या तुंगभद्र बताया गया है जो रत्ना संचयी /मंग्लावती नगर के राजा थे जो बाद में अभिनन्दन नाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए| जैन गाथाओं में उन्हें 52 रक्षक वीरो में से 30वें घंटाकर्ण महाबीर के रूप में पूजा जाता हैं| गुजरात के महूदी में एक मंदिर है जो पूरे भारत में जैन समाज में प्रसिद्द हैं| एक अन्य कथा में उन्हें श्रीनगर श्रीपर्वत का राजा बताया गया है| जैन साहित्य में घंटाकर्ण की पूजा का विशेष विधान है और विभिन्न उपचारों मरणमोहनउच्चाटनलक्ष्मी प्राप्तिरोगों से मुक्ति के लिए घंटाकर्ण जी के मन्त्र का जप का विधान है| जैन कथाओं में श्री घंटाकर्ण को नकारात्मक उर्जाओं व बाधाओं को दूर करने वाले देवता कि ख्याति प्राप्त है|

बौध मत के महायान संप्रदाय के अनुसार महाबल अमिताभ के अवतार हैं और उत्तर पश्चिम दिशा के दिक्पाल हैं|

शिव के प्रति श्री घंटाकर्ण की निष्ठा अटूट है| घंटाकर्ण शिव के अनन्य भक्त थे और वह किसी और देवता का नाम तक सुनना पसंद नहीं करते थे,  इसलिए उन्होंने अपने कानो में घंटे धारण कर रखे थे|

शिव उन्हें समझाना चाहते थे कि शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं है| अतः वह हरीहर अर्थात आधे विष्णु और आधे शिव के रूप में श्री घंटाकर्ण के सामने प्रकट हुए| उस समय घंटाकर्ण उनको नोवैध्य अर्पित रहे थे| जब घंटाकर्ण ने देखा कि नोवैध्य की सुगंध विष्णु के नाक में जा रही है तो उन्होंने अपने उंगलिया उनके नथुनों में डाल दी ताकि सुगंध मात्र भगवान् शिव के नाक में जाए|

श्री घंटाकर्ण अपने इस्ट भगवान् महादेव शिव की भांति ही तरह सरल और दयालु हैं| भक्त लोग जो भी मनौती मांगते हैं उन्हें श्री घंटाकर्ण पूर्ण करते है| उनकी पूजा क्षेत्रपाल या छेत्रपाल के रूप में भी होती है| माँ शक्ति की तरह उनका वाहन भी शेर है| तथा धनुष-बाण और गदा उनके आयुध हैं|

भक्त लोग उनकी जात (जात्रा) में शामिल होते हैं| उन्हें आटे और गुड से बना रोटफल और द्रव्य कि भेट दी जाती है| श्रीफल के भेट सर्वोत्तम मानी जाती है| हजारों वर्षों से वह हमारी चेतना मे बसे हैं और रहेंगे.....

श्री घंटाकर्ण का निम्न मन्त्र सर्वरोगों की ओषोधी माना जाता है...... 

श्री घंटाकर्ण मूल मंत्र 

ॐ घंटाकर्ण महावीरसर्वव्याधि विनाशक, 
विस्फोटक भयम प्राप्तो रक्ष रक्ष महाबल||1||

यत्र त्वम् तिष्टते देवलिखितोअक्षर पंक्तिभी,
रोगास्तत्र पर्णश्यान्ती वात पित कफोढ्भावा||2||
 
तत्र राज भयं नास्तियान्ति कर्ने जपक्ष्यम, 
शाकिनी भूत बेतालराकक्षासा च प्रभवतिन ||3||

न अकाले मरणम तस्य न सर्पेंन द्स्यन्ते,
अग्निस्चौर भयम नास्ति घंटाकर्णओ नमोस्तुते ||4||
 
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घंटाकर्णये ठ: ठ : ठ: स्वाहा 
जय श्री घंटाकर्ण 




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