गढ़पति गंगू रमोला और सैम मुखेम नागराजा पर आधारित नाटिका

संवेदना समूह की प्रस्तुति यह अद्धभुत प्रस्तुति गढ़वाली लोकगीतों और पवाडो में 12 सदी के गंगू रमोला और द्वापर में जन्मे भगवान् श्री कृष्ण की कथा पर आधारित है।

संवेदना समहू की जीतू बग्ड्वाल के बाद, बीर भड़ गढ़पति गंगू रमोला पर आधारित नाटिका दर्शको ने खूब सराही।

उत्तरखंड के गढ़वाल क्षेत्र में नागराजा की पूजा श्री कृष्ण  के रूप में की जाती है । यहाँ मिलने वाले दर्जनो नागदेवता मंदिर इसके गवाह है । वृन्दावन में यमुना जल में निवास करने वाले कालिया नाग उत्तरखंड में कैसे पहुंचे इसका लोकगीतों में जिक्र आता है।

मान्यता है कि कृष्ण के आदेश पर यमुना छोड़ कर कालिया नाग उत्तराखंड के सेम मुखेम आ गए थे। इस इलाके के गढ़पति गंगू रमोला को नागराजा की पूजा स्वीकार नहीं थी।  

ब्रह्मण को ढाई हाथ जमीन दान नहीं देने के श्राप के चलते सम्पन्नता से दरिद्र हुए गंगू को नागराज श्रीकृष्ण की कृपा से ही से ही राजपाट वापस मिला ।

उत्तरकाशी - टिहरी जनपद के बॉर्डर पर सेम मुखेम में नागराजा मंदिर में नागराजा के साथ गंगू रमोला की भी पूजा की जाती है और आज भी हर तीसरे वर्ष यहाँ नागराजा की जात्रा होती है जिसमे हजारो लोग रात्रि जागरण करते है । वर्षो पहले सभ्यता में लोगो की भेष भूषा, भासा बोली तात्कालिक परिस्थिति को नाटक के माध्यम से संवेदना समूह की प्रस्तुति को देस विदेश में खूब प्रसिद्धि मिली है ।

इससे पूर्व गढ़वीर जीतू बग्ड्वाल पर आधारित नाटिका को भी दर्शको का खूब प्यार मिल चूका है ।

प्रशिद्ध रंगकर्मी श्री डोभाल ने उत्तरकाशी पहुंचकर इस नाटक की राष्ट्रीय स्तर का बताया है उन्होंने माना कि रंगमंच की बहुत कुछ गतिविधिया देस प्रदेश है किन्तु हमारी लोक गाथाओ और लोक परम्पराओ आधारित नाटको को मंच मले तो लोग संस्कृति से जुड़े रह सकेंगे।

उत्तरकाशी माघ मेले में विशेष रूप से पहुंचे पुरोला के बीजेपी विधायक मालचंद कहा कि वे मूलरूप नागराजा के भगत है  नागराजा की तिशाला जातर में वो अपने स्तर से पैदल यात्रियों के सेवा का अवसर नहीं छोड़ते है।

बावन बावन गढ़ में बंटे इस प्रदेश में रमोलगढ़ी  गढ़पति गंगू रमोला बहुत अधिक शक्तिशाली और संपन्न  शासक था जिसका शासन नरेंद्र नगर से गंगोत्री तक फैला हुआ था जिसकी दो पत्निया थी जो नागराजा भगवन श्री कृष्ण की भक्त थी, पर खुद गंगू किसी नागराजा को नहीं मानता था।

एक बार ब्राह्मण के श्राप से गंगू के गढ़ में बीमारी ऐसी फैली कि उसे भीख  मांगने के नौबत आ गयी तब नागराजा के कृपा से ही उसे फिर से सम्पन्नता मिली इतना ही नहीं 84 वर्ष की उम्र में पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई थी।

स्वयं गंगू ने ही सेम मुखेम में भगवन नागराजा का मंदिर निर्मित करवा कर वहा पूजा करवाई थी। आज भी देश के कोने कोने से लोग सेम मुखेम में श्री कृष्ण के दर्शन नागराजा के रूप में करते है। कुंडली में काल शर्प योग के निदान के लिए भी लोग यहाँ पूछते है। हर तीसरे वर्ष यहाँ रात्रि जागरण होता है और नागराजा की जात्रा दी जाती है।

मान्यता  यमुना किनारे खेलते समय बालक कृष्ण की गेंद युमना में गिर गयी जहा जहरीला कालिया नाग निवास करता था। गेंद लेने के लिए बालक कृष्ण यमुना में कूद जाते है और नागराज से युद्ध कर उसे वहा से निकल कर उत्तराखंड में जाने का आदेश देते है । नागराज और कृष्ण के युद्ध का दृस्य रोंगटे खड़े करने वाला है।

उत्तराखंड के कुमाऊ में द्वाराहाट के  राजा ब्रह्मदेव नागराजा के बड़े भक्त हुए जिसे उनकी प्रजा उन्हें श्री कृष्ण नाम से पुकारती थी , गंगू की प्रशिद्धि सुनकर ब्रह्मण भेष धारण कर उसके पास पहुँचते है, किन्तु गंगू उनका अपमान करता है जिसके बाद नागराजा - श्री कृष्ण भक्त ब्रह्मदेव के श्राप से गंगू की सम्पन्नता नस्ट हो जाती है सभी बकरिया और जानवर मारे जाते है। और खुद गंगू को भीख मांगने की नौबत  आ जाती है। फिर गंगू को अपनी भूल  अहसास होता है है।

आकाशवाणी के बाद गंगू रमोला खुद सेम के जंगल में नागराजा मंदिर का निर्माण करवा कर वहा पूजा करवाते है जिसके बाद उनकी सम्पन्नता वापस लौट आती है बुढ़ापे में उन्हें संतान प्राप्ति होती होती है।

https://youtu.be/BojGPQ9Npvk

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