कुंजापुरी मंदिर

देवभूमि उत्तराखंड में 52 सिद्धपीठों में से एक माँ कुंजापुरी का मंदिर ऋषिकेश से मात्र 28 किमी कि दुरी पर समुद्रतल से 1,665 मीटर कि उचाई पर स्थित है| यह दैवीय त्रिकोण मंदिर समहू माँ चन्द्रबदनी, माँ सुरकंडा माँ कुंजापुरी में व्यवस्थित है यह दैवीय त्रिकोण बड़ा पवित्र माना जाता है|

प्रजापति दक्ष द्धारा महादेव शिव को यज्ञ में निमंत्रण ना देने तथा माँ सती के समुख ही उनके लिए असामानीय शब्द कहने पर माँ सती द्धारा यज्ञाग्नि में प्रवेश करने के उपरांत शिवगणों द्धारा यज्ञ को खंडित तथा प्रजापति दक्ष का शीश काटने के बाद शोकाकुल महादेव द्धारा माँ सती की पार्थिव देह को वर्षो रुन्दन करते देख भगवान विष्णु द्धारा माँ सती कि पार्थिव देह को सुरदर्शन चक्र द्धारा खंड-खंड करने के कारण माँ के 52 दिव्य अंग जो धरती पर गिरे और एक शक्तिपुंज के रूप में व्यवस्थित हुए| कहा जाता है कि, कुंजापुरी में माँ के दिव्य शारीर का उपरी हिस्सा गिरा था जिसे संस्कृत में कुंजा कहते है इसी कारण माँ के इस धाम का नाम कुंजापुरी हुआ|

मंदिर के मुख्यकक्ष जिसे गर्भगृह कहा जाता है वहाँ एक गड्डा है कहते है यही वो स्थान है जहाँ माँ का कुंज (वक्षस्थल) गिरा था| सभी श्रद्धालु इसी स्थान कि पूजा दर्शन आदि करते है| गर्भगृह में माता की एक छोटी सी प्रतिमा का विग्रह भी रखा हुआ है|

मंदिर परिसर में महादेव शिव, रक्षक भैरव, नरसिंह भगवान, नागराज आदि की भी पवित्र प्रतिमा विग्रह रखें है| मंदिर में प्रातः काल कि आरती सुबह 6:30 बजे व शयनकाल कि आरती 5 से 6:30 बजे तक होती है| कुंजापुरी मंदिर में अन्य मंदिरों की तरह ब्राहमण पुजारी ना होकर क्षत्रिय वर्ण के पुजारी है| परम्परागत रूप से यहाँ भंडारी राजपूत माता की पूजा करते आ रहें है जिन्हें बहुगुणा जाति के ब्राहमण दीक्षित करते है|


ऋषिकेश चंबा मार्ग में स्थित है मंदिर तक जाने के लिए 308 सीड़ियों चढ़कर जाना होता है| मंदिर से उत्तर दिशा कि और हिमालय की बन्दरपूंछ, स्वर्गारोहणी, भागीरथ (गंगोत्री) तथा चौखम्बा आदि शिखर दिखाते है जबकि दक्षिण दिशा में हरिद्धार, ऋषिकेश दिखते है| मदिर से सूर्योदय तथा सूर्यास्त का विहंगम दृश्य भी दीखता है|


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