रुद्रप्रयाग
भगवान् शिव को समर्पित रुद्रप्रयाग गढ़वाल चारधाम यात्रा का मुख्य
स्थान है| पवित्र बदीनाथ तथा केदारनाथ जाने हेतु रुद्रनाथ से मार्ग बंट जाते है
रुद्रप्रयाग से बायीं और का मार्ग भगवान् शिव के केदारनाथ धाम को जाता है तो दाई और
का मार्ग भगवान् विष्णु के भूबैकुंठ श्री बद्रीनाथ धाम को जाता है| रुद्रप्रयाग
में मंदाकनी तथा अलकनंदा का पवित्र संगम होता है|
मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि माँ सती के पर्थिव शरीर के
सिद्धपीठों में स्थापित होने के बाद भगवान् शिव ने यहाँ वीणा बजाते हुए संगीत की
रचना की थी तथा अपने रुद्रा रूप का त्याग यहीं किया था| एक अन्य जनश्रुति के
अनुसार भगवान् शिव ने देवऋषि नारद जी को रुद्रप्रयाग में ही संगीत की शिक्षा
प्रदान की तथा उन्हें वीणा भेंट की थी| प्रयाग स्थल में भगवान् शिव का रुद्रनाथ
मंदिर स्थित है|
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल का एक जिला तथा जिला मुख्यालय
है| समुन्द्रतल से 610 मीटर की उचाई पर स्थित है तथा इसका कुल क्षेत्रफल 2,328 Sq. Kmi.
है| वर्ष 1997 को टिहरी गढ़वाल तथा
चमोली गढ़वाल के हिस्से को मिलाकर रुद्रप्रयाग जिले का गठन किया गया|
रुद्रप्रयाग बद्री-केदार धाम की यात्रा का मुख्य स्थल होने के साथ साथ
साहसिक पर्यटन यात्रा तथा पञ्च केदार यात्रा का भी मुख्य प्रवासीय स्थल है| रुद्रप्रयाग
से मात्र तीन की दुरी पर बद्रीनाथ मार्ग पर अलकनंदा के तट में कोटेश्वर महादेव
मंदिर स्थित है| यहाँ असंख्य प्राकर्तिक शिवलिंगम है जिनपर असंख्य जलधारा अभिषेक
करती है| हर वर्ष अगस्त और सितेम्बर माह में गढ़वाल तथा भारत के हर हिस्से से यहाँ
श्रद्धालु पूजा-पाठ करने आते है|
रुद्रप्रयाग के निकट ही अपनी प्राकर्तिक आभा के लिए विश्व प्रसिद्ध
चोपता नामक स्थान है जहाँ शैलानियो की संख्या हर वर्ष बढती ही जा रही है| यह
समुन्द्रतल से 2900 मीटर की उचाई में देवदार, चीड़ के वृक्षों से भरा स्थान है| दिसम्बर से अप्रेल तक यह स्थान बर्फ के कारण
सैलानियों की विशेष पसंद है|
भगवान् शिव के पुत्र, देव सेनापति, भगवान् कार्तिकेय (दत्त, मुरुगन,)
का मंदिर है| रुद्रप्रयाग से 38 किमी पोखरी गाँव से 3 किमी पैदल मार्ग में समुन्द्रतल
से 3,048 मीटर
की ऊँचाई में भगवान् कार्तिकेय का यह मंदिर है|
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