माँ मनसा देवी मंदिर हरिद्धार

हरिद्धार में स्थित माँ मनसा देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, माँ मनसा को नागो की देवी के रूप में जाना जाता है| पुराणों के अनुसार माँ मनसा देवी को देव आदि देव महादेव के मानस पुत्री बताया गया है, मस्तक से उत्पन्न होने के कारन इन्हें मनसा कहा जाता है| वासुकी नाग द्धारा महादेव से बहन की मांग करने के कारण माता मनसा का जन्म हुआ| वासुकी नाग मनसा के तेज को सहन ना कर सकें तो उन्होंने मनसा माता का पालन करने हेतु तपस्वी हलाहल को पाताल लोक से बुलाया माता मनसा का पालन और रक्षा करते हुए तपस्वी हलाहल ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया| कुछ पुरातन ग्रंथो में माता मनसा की उत्त्पति को महर्षि कश्यप के मस्तक से भी बताया जाता है| माता मनसा को प्राचीन यूनान में भी एक पूजनीय देवी माना जाता था| 

     माता मनसा का नाग कन्या तथा पाताल कन्या होने के कारण इनका पूजन प्रारम्भिक काल में दत्यों तथा वनवासियों तक ही सिमित था लेकिन धीरे धीरे माँ मनसा की महिमा से हिन्दुओं के सभी वर्ण परिचित होते गए और माँ मनसा की पूजा भव्य मंदिरों में परम्परागत ब्राहमणों द्धारा की जाने लगी|  बंगाल में शैव माँ मनसा को विष की देवी मानते है| 

विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नाग कन्या का उल्लेख है जो बाद में मनसा नाम से प्रचालित हुई|

महाभारत में दो स्थानों पर माँ मनसा का उल्लेख मिलाता है युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध से पूर्व माँ मनसा की विशेष पूजा की थी जिसके आशीष के फलस्वरूप पांडव विजयी हुए| युधिष्ठिर ने सालवन गाँव मन माँ मनसा की पूजा की थी जहाँ आज एक भव्य मंदिर बना हुआ है|

महाभारत के युद्ध के पश्च्यात पांडवो ने युद्ध में मारे गए अपने कुल तथा ब्राहमण हत्या के पाप के लिए वन को प्रस्थान किया और राजपाठ अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को सोंप दिया, राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के कटाने से हुयी तब राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने अपने छ भाईयों सहित नागो से प्रतिशोध लेने हेतु नाग जाति के सर्वनाश के लिए सर्पेष्ठी यज्ञ किया जिससे नाग लोक में हाहाकार मच गया| तब वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह जगत्कारु से करवाया जिनसे आस्तिक का जन्म हुआ आस्तिक ने सभी नाग जाति का संरक्षण किया|

      माँ मनसा के सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारूजगतगौरीमनसासियोगिनीवैष्णवीनागभगिनीशैवीनागेश्वरीजगतकारुप्रियाआस्तिकमाता और विषहरी।

  माँ मनसा का रूप सोम्य है माँ का आसन सर्पो से आच्छान्दित कमल पर है माँ के चारो और सात सर्प विराजमान है| माँ की गोद में एक बालक को भी प्रतिमा में दिखाया जाता है जो माँ मनसा के पुत्र आस्तिक जी है|


      माँ मनसा के कई मंदिर भारत में है लेकिन हरिद्धार के अतिरिक्त चंडीगढ़ के पंचकुला में वर्ष 1811-1815 में महाराजा गोला सिंह द्धारा 100 एकड़ में बनवाया गया भव्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध है| यहाँ नवरात्री में भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमे विश्व भर से माँ के भक्त एकत्रित होकर माँ के गुणगान करते है|

       हरिद्धार में आने वाले करोडो श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1981 उषा ब्रेक्रो लिमिटेड www.ushabreco.com हरिद्धार के प्रसिद्ध माँ मनसा देवी धाम में Rope Way का सुभारम्भ किया|

       माता के इस धाम में जाने के लिए पूर्व में दो मार्ग थे 3.5 Kmi की दुरी वाला पैदल मार्ग और दूसरा लगभग 670 सीडीयों वाला मार्ग| इन मार्गो से बुजुर्ग तथा भरी शरीर वाले श्रद्धालुओं को माता के धाम में जाने में कठिनाई होती थी जो Rope Way बनने के बाद एक आरामदायक यात्रा बन गयी|



      आज माँ मनसा देवी Rope Way एक अति व्यस्त संसथान है शारीरिक रूप से सक्षम श्रद्धालु पैदल मार्ग से शीघ्र माता के दर्शन करके लौट आते है लेकिन Rope Way की लम्बी पंक्ति में फंसे श्रधालुओं को माता के भवन तक पहुचने में ही घंटो लग जाते है|




     माँ मनसा धाम समुन्द्रतल से 178 मीटर (540 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है तथा माँ के धाम तक पहुचने के लिए Rope Way की कुल लम्बाई 540 मीटर (1,770 फीट) है|

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