पंच केदार - एक पवित्र और साहसिक यात्रा

देव आदि देव महादेव के भक्त उनके हर धाम में पहुचने को लालायित रहते है फिर वो धाम चीन शासित तिब्बत में कैलाश मानसरोवर जैसी दुर्गम यात्रा हो या फिर इस्लामिक आतंकियों के गढ़ में स्थित पवित्र अमरनाथ यात्रा......

देवभूमि उत्तराखण्ड में महादेव के 12 ज्योतिलिंलम में से एक केदारनाथ जी के महातम का सभी धर्म परायण श्रधालुओं को भली भांति पता है| लेकिन बहुत से व्यक्ति केदारनाथ जी के पूर्ण स्वरुप में विखंडित केदारनाथ को नही जानते, केदारनाथ जी के इस पूर्ण स्वरूप की यात्रा को ही उत्तराखंड में पंच केदार यात्रा कहते है| 
चित्र सम्भार http://www.uttarakhandadventure.in


कहते है कि, पञ्च केदार सहित काठमांडू नेपाल में स्थित श्री पशुपतिनाथ जी के दर्शन उपरांत ही केदारनाथ जी के दर्शन को पूर्ण माना जाता है| केदारनाथ सहित अन्य चार केदार कि यात्रा भी सडक तथा दुर्गम पैदल मार्ग द्वारा कि जाती है, श्रधा, विश्वास और साहस का यह अद्भुत संगम महादेव के भक्तो में सरलता से पाया जाता है|

यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है, जैसे कि रात में रुकने के लिए टेंट हो और खाने के लिए भोजन या अन्य चीजें। तो यहाँ की यात्रा आरम्भ करने से पहले आप इन सारी चीजों का ध्यान रखना न भूलें। अगर आप यहाँ पहली बार जा रहे हैं तो अपने साथ गाइड ज़रूर रखें क्योंकि मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं।

केदारनाथ जी की कथा.......


महभारत में हुए प्रलयकारी युद्ध के उपरांत पांडवों ने हस्तिनापुर का शासन संभाला लेकिन युद्ध में अपने कुल के नाश, गुरु हत्या जैसे पाप का परायश्चित भी उन्हें करना था| इस पाप के दंड को स्वीकार करते हुए उन्होंने भगवान् कृष्ण से परामर्श किया तो भगवान् कृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा कि, युद्ध में मूल था धर्म और अधर्म का इसलिए आप लोग किसी भी तरह के पाप के भागी नही लेकिन आपकी यह भावना उत्तम है कि आप कुल हत्या तथा ब्राहमण हत्या का प्रायश्चित करना चाहते है यह दोनों ही गौहत्या सम्मान महापाप है जीने लिए आपको देव अदि देव महादेव के शरण में जाना चाहिए वो ही आपको क्षमा कर सकते है|

भगवान कृष्ण के वचनों को सुनकर पांचो पांडवो ने अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा नियुक्त कर भगवान शिव कि शरण में चलने को यात्रा आरंभ की|

सर्वप्रथम पांडव शिव नगरी कशी कि और गए| पांडवो को अपनी और आता देख भगवान् शिव काशी से लुप्त होकर लघु कैलाश (उत्तराखंड) में आ गए क्यूंकि वो इतनी सरलता से पांडवो को दोषमुक्त नही करना चाहते थे| देवऋषि नारद द्वारा महादेव के उत्तराखंड प्रस्तान का समाचार सुनकर पांडव भी उत्तराखंड की और आए|

पांडवो ने उत्तराखंड के एक स्थान पर देखा कि गौवंश के झुण्ड में एक बैल अन्य से भिन्न था तथा उससे अलोकिक प्रकाश पुंज निकल रहा था पांडवो को समझते देर ना लगी कि यही सदा शिव है, लेकिन जैसे ही पांडवो ने उनकी और बढ़ाना आरंभ किया उस बैल रूपी शिव ने धरती में सिंग मार कर एक गड्डा कर दिया और फिर उसी में वो लोप हो गए| यह स्थान आज गुप्तकाशी के नाम से उत्तराखण्ड के चमोली गढ़वाल में स्थित है तथा पवित्र केदारनाथ यात्रा मार्ग का एक पढाव भी है|




पांडवो ने अपनी यात्रा आगे जारी रखी कुछ दिनों बाद वो एक बुग्याल (गौचरण भूमि) में पहुचे, उन्हें वहां भी पूर्व कि भांति एक बैल अन्य गौवंश के साथ दिखाई दिया| इस बार पांडवो ने युक्ति से कार्य किया जिसमें महाबली भीम ने अपने विशाल शारीर का प्रयोग करते हुए मार्ग के दोनों पहाड़ो पर अपन पैर जमा लिए तथा इसके बाद चारो पांडवो सहित द्रोपती ने सभी गौवंश को भीम के पैरो के नीचे से निकलने वाले मार्ग कि और भागना आरंभ किया| सदा शिव ने पुनः बैल रूप में धरती पर गड्डा बनाने के सिंग मरने आरंभ किए तो भीम ने झुक कर महादेव को पकड़ने की कोशिश की जिसमे भीम के हाथ बैल रूपी शिव के पिछले भाग को ही पकड सके| बैल रूपी शिव का यह भाग क्षण भर में ही पत्थर बन गया|

शिव को पुनः ना मिल पाने से निराश बैठे पांडवो को आकाशवाणी द्वारा महदेव ने कहा कि हे आर्य पांडवो में आपकी श्रधा से प्रसन्न होकर आपके सभी पापो को क्षमा करता हुए ज्योतिलिंलम के रूप में विराजमान होता हूँ|

इसके बाद पांडवो द्वारा वहां एक भव्य मंदिर बनाया गया जिसे आज हम भगवान् केदारनाथ के नाम से जानते है| धरती में समाने के बाद बैल रूपी शिव का पिचला भाग केदारनाथ में है तो भुजा तुंगनाथ, नाभि स्थल मदमहेश्वर, आँख (मुख) रुद्रनाथ में तथा जटाओं कि पूजा कल्पेश्वर नाथ में होती है|

भगवान् शिव के यह सबसे उच्चे स्थान पर स्थित पञ्च धाम है जिनकी समुद्रतल से उचाई निम्न है.......

  • केदारनाथ            3,583 m (11,755 ft)
  • तुंगनाथ              3,680 m (12,070 ft)
  • रुद्रनाथ               2,286 m (7,500 ft)
  • मदमहेश्वर         3,490 m (11,450 ft)
  • कल्पेश्वर           2,200 m (7,200 ft)

कैसे करें यात्रा पञ्च केदार की.............?

यात्रा करने के लिए सबसे पहले मंदिरों के कपाट खुलने कि तिथि ज्ञात करें जो अप्रेल-मई में होती है| पहाड़ो में घूमने के लिए अप्रेल से जून सबसे अच्छा समय माना जाता है इसके बाद वर्षाकाल (जुलाई-अगस्त) के उपरांत अगस्त-अक्टूबर का समय होता है यह दोनों ही समय प्राकृतिक वातावरण के अद्भुत द्रश्य को दिखाते है|

मई-जून में छुट्टीयों के कारण हर पर्यटन व धार्मिक स्थान में भीड़-भाड़ रहती है इसका एक लाभ यह है कि खाने पीने में कोई कमी नही होती तथा हर और स्थानीय-प्रादेशिक दूकानदार अपने अपने खानपान के साथ रहते है| लेकिन, इस समय भीड़ के अनुसार होटल के किराए में उतार-चढाव आता रहता है जबकि अगस्त-अक्टूबर में भीड़ कम होने के कारण सभी वस्तुओं के दाम अपने निचले स्तर पर होते है|


यात्रा पर निकलने से पूर्व कुछ आवश्यक दवा, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, उपकरण, टोर्च, रेन शूट, ओक्सीजन का छोटा सिलेंडर या कपूर कि गोलियां, गर्म कपडे आदि .....

तथा यात्रा के पूर्व हर धाम तक पहुचने का समय तथा वहां कि मोसम की जानकारी का भी अध्यन करें| यात्रा की अपने निवास स्थान से ऋषिकेश की दुरी को धयान में रखते हुए निम्न प्रकार से लिखकर यात्रा आरंभ करें ......

ऋषिकेश से गौरीकुंड          215 kmi

ऋषिकेश - देवप्रयाग - श्रीनगर - रुद्रप्रयाग - गुप्तकाशी - सोनप्रयाग - गोरीकुंड 

ऋषिकेश से गोरीकुंड कि यह यात्रा लगभग 7 घंटे में होती है| इस मार्ग में कई दार्शनिक स्थल भी है जिनमें पवित्र संगम स्थल देवप्रयाग भी है| सर्वप्रथम देवप्रयाग में ही पवित्र नदी गंगा को उनके नाम से पुकारा जाता है देखा जाए तो देवप्रयाग में ही पवित्र गंगा का जन्म होता है| देवप्रयाग में पवित्र अलकनंदा और पवित्र भागीरथी का संगम होता है और इन दोनों के संगम से स्वर्ग से उतरते समय सात भागो में विभक्त गंगा अपने मूल स्वरुप में वापिस आती है| ऋषिकेश से देवप्रयाग कि दुरी 90 kmi की है जो लगभग ढाई-तीन घंटे में पूरी हो जाती है|

देवप्रयाग में भगवान् राम का एक भव्य तथा सतयुग कालीन रघुनाथ मंदिर भी है| कहा जाता है कि भगवान् राम ने यहाँ रावण की हत्या के उपरान्त अपने ऊपर लगे ब्रहम हत्या के दोष मुक्ति हेतु तप किया था|

देवप्रयाग के बाद रुद्रप्रयाग नामक एक संगम स्थल है| सृष्टि के सबसे प्राचीन स्थल के रुद्रप्रयाग में भगवान् शिव ने माँ सती द्वारा अपने पिता के यज्ञ में यज्ञाग्नि में कूद कर आत्मदाह करने के उपरान्त कुछ क्षण विश्राम किया था एक अन्य कथा के अनुसार यह भी कहा जाता है की भगवान् शिव ने देव ऋषि नारद को संगीत की शिक्षा भी यही दी थी| रुद्रप्रयाग में पवित्र मन्दाकिनी तथा पवित्र अलकनंदा का संगम होता है और आगे चलने बाद यह अलकनंदा के नाम से ही जानी जाती है|
                                                                                                  
गुप्तकाशी में पांडवो ने सर्वप्रथम बार भगवान् शिव को बैल रूप में देखा था लेकिन वो उन्हें पाने में असफल हुए थे|


सोनप्रयाग में पवित्र सोनगंगा तथा पवित्र मन्दाकिनी का संगम होता है| इससे आगे इने मन्दाकिनी के नाम से जाना जाता है|

गोरीकुंड नामक स्थान पर माँ पार्वती ने विवाह से पूर्व स्नान किया था यहाँ तीन जलकुंड है जिनमे हर एक का रंग अलग-अलग है| एक कुंड का रंग हल्दी के सामान पीला है तो दुसरे का रंग लालिमा युक्त है जबकि तीसरा कुंड गर्म पानी का है| वर्ष 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ से गौरीकुंड को काफी क्षति पहुची थी|
                                   
गोरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग 18 kmi समय लगभग 8 से 9 घंटे 

केदारनाथ से गौरीकुंड वापसी तथा उखीमठ में रात्रि विश्राम 18 kmi पैदल तथा 43 Kmi सड़क मार्ग द्वारा 

केदारनाथ - गौरीकुंड - सोनप्रयाग - गुप्तकाशी - कुंड - उखीमठ 


उखीमठ से मदमहेश्वर 

उखीमठ से उनियाना 22.5 Kmi सड़क मार्ग द्वारा यहाँ से पवित्र मदमहेश्वर धाम के लिए 16 Kmi की पैदल यात्रा करनी होती है| उखीमठ से सुबह 7-8 बजे तक निकलकर रांसी या गौधार गावं तक पहुचे का प्रयास करे| गौधार में एक होटल है जबकि अन्य स्थानों में गाँव के किसी घर में आप रुक सकते है| यह गाँव वाले आपके द्वारा उनियाना से गाइड, पोटर, कुली का कम करने वाले हो सकते है जो बेहद ही सरल स्वाभाव के कारण आपसे जल्दी ही घुलमिल जाते है और यात्रा में एक पुराने मित्र कि तरह व्यवहार करते है|

रांसी या गौधार से आप अगले दिन पवित्र धाम मदमहेश्वर कि यात्रा सुबह आरम्भ कर दें| रस्ते में खाने पीने का समान साथ लेकर ही चलें पानी को प्यास लगने पर घुट घुर कर ही पीये| यह उच्च हिमालय क्षेत्र है इसलिए यहाँ ओक्सीजन कि कमी होती है इसलिए एक सामान कदम रखे|

मदमहेश्वर धाम 3,289 m पर चोखाम्बा हिमालय शिखर की तलहटी पर स्थित है, केदारनाथ पर्वत शिखर (मेरु-सुमेरु हिमालय) तथा नीलकंठ हिमालय शिखर (बद्रीनाथ) भी यहाँ से दिखाते है| इससे यहाँ का वातावरण अद्भुत हो जाता है|


मंदिर परिसर में बनी धर्मशाला में आप रात्रि विश्राम कर सकते है इसके लिए आपको मंदिर के पुजारी जी से पहले बात करनी चाहिए,कभी कभी अधिक श्रदालुओ के पहुचने से धर्मशाला में स्थान नही रहता तब आस पास बने घरो में रहना पड़ता है| थोड़ी असुविधा होती है लेकिन महदेव के इस धाम में सबको खाने रहने को मिल ही जाता है|

अगले दिन कुछ जल्दी उठकर आप बुड्डा मदमहेश्वर 2 Kmi जा सकते है यहाँ से चोखामा का आरंभ माना जाता है यह एक दर्शनीय स्थान है|

इसके बाद पुनः 16 Kmi पैदल मार्ग से आप उनियाना से चौपता 82 kmi लगभग 3 घंटे के सड़क मार्ग से पवित्र तुंगनाथ धाम के पैदल मार्ग में स्थित चोपता तक पहुच सकते है| यहाँ रात्रि विश्राम करें|

चोपता एक बेहद ही सुंदर स्थान है यहाँ का क्षण क्षण में बदलता मौसम मंत्रमुग्ध कर देता है| यदि शारीर में थकान के लक्षण हो तो एक दिन चौपता में ही विश्राम करें|


चौपता से पवित्र तुंगनाथ धाम कि दुरी मात्र 3.5 kmi है लेकिन यह भी उच्च हिमालयीय क्षेत्र है और 3.5 kmi की दुरी तय करने में 5 से 6 घंटे लग जाते है इसलिए कम दुरी है यह ना विचार करें|

सुबह 6-7 बजे तक यात्रा आरंभ कर दें और कोशिश करे की दोपहर के 1 बजे तक पवित्र तुंगनाथ धाम के दर्शन करने के बाद 1.5 Kmi की दुरी पर स्थित पवित्र व रमणीय स्थान चन्द्रशिला की यात्रा आरंभ कर सकें| चंद्रशिला (समुन्द्रतल से ऊँचाई 4000 m) से हिमालय पर्वत शिखरों के विराट दर्शन होते है यह स्थान ध्यानयोग के लिए बेहद ही उत्तम माना जाता है|

यहाँ से चौपता वापसी के समय को धयान में रखकर नीचे उतरना आरंभ करें, शाम के 6 से 7 बज तक चौपता वापसी सुनिश्चित करें| चाय-नाश्ता करने के बाद आप गोपेश्वर के लिए सड़क मार्ग द्वारा 95 Kmi के यात्रा आरंभ करें जो अनुमानित 3 घंटे में पूर्ण की जाती है यहाँ कई होटल धर्मशाला है|

गोपेश्वर पवित्र रुद्रनाथ के लिए यात्रा का एक पढाव है, यह एक पोराणिक नगर तथा चमोली गढ़वाल जिला की तहसील है| गोपेश्वर नगर में स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर में महादेव शिव द्वारा कामदेव के वध को चलाया गया 5 मीटर का त्रिशूल आज भी आश्चर्य पैदा करता है| महादेव त्रिशूल में आज तक ना तो मौसम का प्रभाव पड़ता है और ना जंग लगता है, कहते है कि इस त्रिशूल को कोई सच्चा तथा पवित्र ह्रदय का मनुष्य छूए तोही यह हिलाता है|


इस प्राचीन मंदिर का वास्तुशिल्प अद्भुत है इस मंदिर के शीर्ष पर एक गुम्बद है 30 वर्ग फुट के गर्भग्रह में पहुचने के लिए 24 द्वार बने है जो इस मंदिर को अपन आप में एक विशेष मंदिर मंदिर तथा अद्भुत अतुलनीय वास्तुशिल्प कला का प्रतिक बनाते है|

मंदिर प्रांगण में चार गुढ़लिपि में लिखे अभिलेख है जिनमे से अभी तक मात्र एक को ही पढ़ा जा सका है| 13 सदी में गढ़वाल नेपाल के युद्ध में नेपाली राजा अनेकमल्ल ने यह स्थान जीत लिया था| राजा अनेकमल्ल की स्तुति में लिखे कई अभिलेख यहाँ उल्लेखित है|

मंदिर परिसर में कई खंडित प्रतिमाए भी रखी गए है जो कालांतर में यहाँ कई और मंदिर होने का प्रमाण है जो किसी प्राकृतिक आपदा के कारण धवस्त हो गए होंगें|

पवित्र रुद्रनाथ जाने के यहाँ से तीन पैदल मार्ग है|

प्रथम मार्ग - हेलेंग - उर्गम घाटी - कल्पेश्वर धाम - दमक - रुद्रनाथ
द्वितीय मार्ग - सागर गांव - लिटी बगयाल - पानार बगयाल - पितरधर - रुद्रनाथ
त्रितीय मार्ग - मंडल गाँव - माँ अनसूया मंदिर - हंसा बुगैल - नाओला पास - रुद्रनाथ  


 इनमे से द्वितीय मार्ग को अधिकतर प्रयोग किया जाता है क्युकी यह एक सरल तथा परिचित मार्ग है और इस मार्ग से प्राकृतिक दर्शन के अविस्मरनीय क्षण मन को आनंदित करते है|


गोपेश्वर से फिर सगर गाँव तक की यात्रा की जाती है, जो रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा का बस द्वारा अंतिम पड़ाव है। इसके बाद शुरू होती है इस मंदिर तक के लिए अकल्पनीय चढ़ाई। सगर से लगभग 4 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद प्रारम्भ होती है, उत्तराखंड के सुन्दर बुग्यालों की यात्रा, जो पुंग बुग्याल से प्रारम्भ होती है।

बुग्यालों व चढ़ाइयों को पार करके पहुँचते हैं पित्रधार नामक स्थान जहाँ शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर श्रद्धालु अपने पितरों (पूर्वजो) के नाम के पत्थर रखते हैं। रुद्रनाथ की चढ़ाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। रास्ते में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती है जो फूलों की घाटी सा आभास देती है। पित्रधार होते हुए लगभग 10-11 किलोमीटर बाद पहुंचते हैं आप अपने गन्तव्य, पंचकेदारों में तीसरे केदार, रुद्रनाथ मंदिर में। 


यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है, जहाँ शिवजी गर्दन टेढ़े किये हुए विराजमान हैं। माना जाता है कि, शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है, यानी अपने आप प्रकट हुई है और अब तक इसकी गहराई का पता नहीं लग पाया है।

मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है, जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाते हैं और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुँचते हैं। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि, यहां के सौन्दर्य को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। इसके चारों ओर शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार व मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा, देवपुष्प ब्रह्मकमल भी यहां की घाटियों में बहुतायत में मिलते हैं।

रुद्रनाथ धाम से वापिस गोपेश्वर पहुँच कर बदीनाथ मार्ग में स्थित हेलेंग पहुचे यह पवित्र कल्पेश्वर धाम का पड़ाव गाँव है| 

शिव पुराण के अनुसार इस स्थान पर ऋषि दुर्वास जी के ऊपर वरदान देकर कल्पवृक्ष की बैठकर तपत्व की थी तब से यह कल्पेश्वर कहलाने लगा और। केदार खंड पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है कि इस जगह में दुर्वास ऋषि ने कल्पवृक्ष की बैठे बैठे घोर तपस्या की तभी से यह स्थान कल्पेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके अलावा अन्य कथा के अनुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायण्यत्वती की और भगवान शिव की दर्शन कर अभय का वादान प्राप्त किया था।


कल्पेश्वर कल्पगंगा घाटी में स्थित है कल्पगंगा को प्राचीन काल में नाम हिरण्यवती नाम से पुकारा जाना था, उसके दाहिने स्थान पर स्थित समुद्र तट का भूमि दुरबसा भूमि कही जाती है। इस जगह पर ध्यान बद्र का मंदिर है कल्पेश्वर चट्टान का पाद में एक प्राचीन गुहा है। जिसके भीतर गर्भ में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं काल्पेश्वर रॉक दिखने में जटा जैसा दिखना होता है। देवग्राम के केदार मंदिर की जगह पर पहले कल्पवृक्ष में कहा जाता है कि यहां पर देवताओं के राजा इंद्र ने दुर्वास ऋषि की शाप से मुक्ति पाने के लिए शिव-आराधना कर कल्पातरु प्राप्त किया था।

कल्पेश्वर दो मार्गों से पहुँचा जा सकता है पहले मंडल से अनुसूया देवी से आगे रुद्रनाथ होकर जाते हैं और दूसरा रास्ता हेलंग से संकरे सामान्य ढाल से मार्ग से पैदल या सवारी से तय किया जा सकता है वन क्षेत्र के नज़दीक से पहुंचा जा सकता है इस रास्ते पर एक खुबसूरत जल प्रताप भी आता है जो प्रकृति का मनोहर नजारा है।

हेलंग से आप सनातन हिन्दू धर्म के चार पवित्र धाम में से प्रथम धाम श्री बद्रीनाथ जी, चार शंकराचार्य पीठो में से एक ज्योतिर्मठ पीठ जोशीमठ व Show Sky था एशिया के सबसे बड़ी Ropeway सेवा (3.5 kmi) में से एक जोशीमठ से ओली तक की यात्रा कर सकते है| 



औली 

पञ्च केदार सहित बद्रीनाथ तथा ओली की यह यात्रा लगभग 15 दिनों में पूर्ण होती है| इस दुर्गम और कठिन यात्रा के लिए आपको शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है| यह आवश्यक नही कि आप पञ्च केदार यात्रा को एक बार ही पूर्ण करें आप इसे अलग अलग समय में अन्य पवित्र तथा सुरम्य पर्यटक स्थलों के साथ जोड़कर भी कर सकते है|

मैं महादेव से प्रार्थना करता हूँ कि वो आपकी यात्राओं को सफल, आनन्दमयी व् कल्याणकारी बनाने का आशीष व कृपा बनाएं रखें|

हर हर महादेव, जय बद्री केदार 

Comments

Raunak Chauhan said…
Nice Post to Best Spritual Place of Panch Kedar, Get Complete Itineray of Panch Kedar Yatra Package.
Raunak Chauhan said…
Nice Post to Best Spritual Place of Panch Kedar, Get Complete Itineray of Panch Kedar Yatra Package.
Pooja said…
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने । ऐसे ही जानकारी देते रहे उत्तराखंड में पंच केदार
Pooja said…
This comment has been removed by the author.
Anjali Bhist said…
The Panch Kedar Yatra in Uttarakhand is a sacred pilgrimage to five temples dedicated to Lord Shiva. It offers a spiritual journey through the majestic Himalayas, where devotees can connect with nature and seek divine blessings. Each temple holds a unique significance, making it a profound and rewarding experience for those who undertake this yatra.

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