आजादी के 70 वर्ष बाद भी नही मिली बिजली पर भगवान् की शपथ पर मिलाता है लोन

देवताओं पर अटूट विश्वास, भारतीय संस्कृति, सामाजिक एकता और आधुनिक सुविधाओं से दूर देवभूमि उत्तराखंड का यह गाँव एक प्रतिक स्तम्भ है आपसी भाईचारे और सरकार की जन जन तक ना पहुँच सकी बिजली,पानी,सड़क जैसी मुलभुत सुविधाओं का.....


 देश कि सबसे बड़ी जल विधुत परियोजना में से एक टिहरी जल विधुत परियोजना का नाम तो सभी भारतीय नागरिको ने सुना होगा लेकिन कितने लोग जानते है कि इसी परियोजना से लगभग 80 किमी दूर एक गाँव में आज तक ना तो सड़क पहुची ना बिजली ना पानी....

उत्तराखंड राज्य का निर्माण इसी सोच के लिए किया गया था कि पर्वतीय गाँवो का विकास किया जायेगा बिजली, पानी, सड़क जैसी मुलभुत सुविधाओं को हर गाँव से जोड़ा जायेगा लेकिन राज्य निर्माण के 17 वर्ष बाद भी बहुत से गाँव आज भी मुलभुत सुविधाओं से वंचित है| 

टिहरी गढ़वाल के भिलंगना प्रखंड का गंगी गाँव राज्य व केंद्र सरकारों के विकास के दावों कि पूरी परत उखाड़ फैंकता है|

2017 में पहली बार प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के हेलिकॉप्टर ने इस गाँव में सत्ता के नेता को देखा और उनसे सुना गाँव में विकास होगा यदि वो सत्ता में आए लेकिन अब सत्ता कांग्रेस से हटकर बीजेपी के पास है तो क्या इस गाँव को मात्र हरीश रावत के पुनः मुख्यमंत्री बनाने तक उपेक्षा सहन करनी होगी|

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कि उत्तराखंड में चार धाम यात्रा मार्ग पर आल वेदर रोड बनाने कि महत्वाक्षी परियोजना है जबकि प्रदेश के नेताओ का गाँवो के प्रति कोई स्पस्ट दृष्टिकोण आज तक पर्वर्तीय क्षेत्र में नही दिख पाया| चुनावी मोसम में नेता भी बरसात कि तरह आते है और वोट समेट कर गायब हो जाते है|

यह गंगी गाँव की बदहाल हालत है जिसके लिए मात्र और मात्र सरकारी तंत्र और नोकरशाही जिम्मेदार है| वहीँ गंगी गाँव का आपसी भाईचारा, धर्म के प्रति समर्पण एवम् अपने देवता के प्रति निष्ठां का उदहारण अतुलनीय, अद्भुत है है|

गंगी गाँव के मध्य में उनके कुलदेवता का सोमनाथ का मंदिर है| 150 परिवारों वाले इस गाँव के निवासी अपने धन को मंदिर में रखते है| यदि किसी को किसी कार्य हेतु धन चाहिए होता है तो वो मंदिर में देव प्रतिमा के समुख एक दिया जलाकर लोगो के मध्य शपथ धन वापसी के समय को बताते हुए शपथ उठता है और उसको जितना धन चाहिए होता है उसे दे दिया जाता है|

गंगी गाँव खतलिंग हिमालय के आरंभ में बसा एक बेहद खुबसूरत पर्यटन स्थल भी है यहाँ कभी कभी कुछ सहासिक पैदल यात्रा के यात्री आते है| ऋषिकेश से 135 किमी सड़क मार्ग से घुत्तु और फिर पैदल 5-6 किमी कि यात्रा करके यहाँ पंहुचा जा सकत है| 

वर्ष भर यहाँ का मोसम शरद रहता है यहाँ से हिमालय के दर्शन बहुत समीप से होते है| ठंडे वातावरण व अधिकतर महीने बर्फ़ से ढँके इस गॉव के लोगों का पहनावा अन्य उत्तराखंडीयो से भिन्न है। यहाँ के पुरूषों व स्त्रीयों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक डिगला, आंगडु, पाखला, थालकू तथा पागडू है। अत्यंत ठंड के कारण यहाँ के अधिकतर मकान आज भी लकड़ियों के बने है।

गंगी के लोगों का मुख्य व्यवसाय गाय, भैंस, भेड़, बकरी पालन है व यहाँ की मुख्य फ़सल आलू, राजमा, इत्यादि है। गंगी के लोग आज भी चकाचौंध व भागदौड़ की दुनिया से दूर सादगी मे जीवन जीना पंसद करते है, शायद यही वह वजह है जो इस गॉव को अन्य गॉव व शहरों से अलग अपनी पहचान बनाये रखने मे सफल रख पाई है।

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